हम अपनी आवारगी से डरते हैं
हम अपनी आवारगी से डरते हैं
इश्क में बेचारगी से डरते हैं।
बेइंतहा रुसवाई मिली है हम को
बस सिर्फ तन्हाई मिली हम को।
अश्क आंख में अब तो जम गये
आ भी जाओ ,जान से हम गये।
खूब रिश्ता हुआ मुझसे दर्द का
बेकसी,आंसू ,और आह सर्द का।
मर कर किसी पर हम जी रहे हैं
ज़हर जुदाई का मगर पी रहे हैं।
सुरिंदर कौर