हम अकेले अनमने से हो गये…..!!
हम अकेले अनमने से हो गये,
धुंध में सब ख़्वाब जैसे खो गये।
बोलियाँ जब लग रहीं थीं हुस्न की,
देख मंजर आशिकी का रो गये।
नींद में सब सो रहे थे मस्त से,
बीज वो तब नफ़रतों के बो गये।
रात कैसी बावली सी लग रही,
तान चादर मौत की हम सो गये।
कर रहे थे बात ऊँची कल वही,
रेत बनकर इस जहां से वो गये।
ऐ “परिंदे” देख कर तू उड़ जरा,
अब तो’ अपने देख कातिल हो गये…!!
📝पंकज शर्मा “परिंदा”