हमेशा चलो तुम (गीतिका)
* हमेशा चलो तुम *
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साथ मिलकर समय के हमेशा चलो तुम।
सब हताशा तजो हाथ मत यूं मलो तुम।
जान लो मंजिलें कर रहीं हैं प्रतीक्षा।
दूरियां हैं मिटानी यही सोचलो तुम।
है नदी की तरह पर्वतों से गुजरना।
इसलिए हर समय हिम शिखर से गलो तुम।
वक्त रुकता नहीं है किसी के लिए भी।
अब कठिन हाल अनुरूप जल्दी ढलो तुम।
बह रही आज विपरीत हैं जब हवाएं।
अब नहीं खौफ तूफान में भी जलो तुम।
है भरोसा स्वयं पर नहीं फिर समस्या।
शुष्क है मरुधरा खूब फूलो फलो तुम।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य।
मण्डी (हिमाचल प्रदेश)