हमें मिलते हैं तो हर बार ही इन्कार करते हैं
हमें मिलते हैं तो हर बार ही इन्कार करते हैं
मगर वो आइने के सामने इज़हार करते हैं
सताते हैं दुखाते दिल कभी वो रूठ भी जाते
भरोसा है मगर हमको हमीं से प्यार करते हैं
कभी रखते मुहब्बत को बनाकर राज़ दुनिया से
कभी ऐलान उल्फ़त का सरे-बाज़ार करते हैं
जिन्हे चाहा जिन्हे पूजा हमेशा दिल से ही हमने
वही जीना हमारा रोज़ अब दुश्वार करते हैं
हमारा हौसला देखो हमारा अज़्म भी देखो
लिए कश्ती समुन्दर को अकेले पार करते हैं
कई ईमान की ख़ातिर लुटा देते हैं जाँ अपनी
मगर ईमान का सौदा कभी गद्दार करते हैं
उजालों में नज़र आते भले इन्सान से जो वो
अंधेरों में न जाने कौन सा व्यापार करते हैं
अना बारीक है इक शय सरों पर जब चढ़ा करती
हमीं अपने लिए गड्ढे सभी तैयार करते हैं
उन्हे मालूम है ‘आनन्द’ होगा किस तरह घायल
ज़ुबाँ ख़ामोश रखते हैं नज़र से वार करते हैं
शब्दार्थ:- अज़्म = संकल्प/निश्चय/इरादा
डॉ आनन्द किशोर