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21 Apr 2022 · 1 min read

हमें फिर से सपने दिखाने लगे।

ग़ज़ल

122…..122…..122…..12
हमें फिर से सपने दिखाने लगे।
दिवाना हमें फिर बनाने लगे।

तुम्हारे सितम याद आने लगे।
जिन्हें भूलने में जमाने लगे।

जिन्हें दर्द अपना सुनाने को थे,
वो अपनी कहानी सुनाने लगे।

जो वादे किए थे चुनावी कभी,
उन्हें जीतते ही भुलाने लगे।

है उन सारे बच्चों की बदकिस्मती,
हुए पढ़ने लायक कमाने लगे।

चले चांद पर अपना घर बेचकर,
वो जन्नत जहन्नुम बनाने लगे।

कि नफ़रत ही जिनसे मिली उम्र भर,
मुझे अपना प्रेमी दिखाने लगे।

……..✍️ प्रेमी

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