हमें तुम अपने शहर हर रोज बुलाते हो
हमें तुम अपने शहर हर रोज़ बुलाते हो,
क्या कभी देखा है हवाओं को अग्नि के इशारों पे चलते हुए।
हर रोज तुम मुझसे रुठ जाते हो ,
क्या कभी देखा है इंसा की शिकायत लाशों को सुनते हुए।
हमें भी है हसरत तुमसे मिलने की मगर,
क्या कभी देखा है तुमने ज़मी को आसमा से मिलते हुए।
दूसरों के दुख से दुखी होती है दुनिया मगर,
क्या कभी देखा है दूसरों के खुशी में दुनिया को खुश होते हुए।
-अभिनव कुमार यादव