“हमें छोड़कर बीच में न जाना बाबा”
हमें छोड़कर बीच में न जाना बाबा।
तुम्हीं हो एक युग को दर्शाते,
विगत काल की याद दिलाते,
हतोत्साहित को प्रोत्साहित करते,
एक युग अंत का विषाद भरते,
हमें अपनी आंखों के मोतियों को न सुखाना बाबा।
हमें छोड़कर बीच में न जाना बाबा।
जब तक जीवन का अंश बचा है,
युग प्रवाह का संदेश जगा है,
खत्म हो गया गांधी युग पर ,
गुल-गुलशन अभी सुरभित सजा है,
हमें छोड़कर न जाने की कीमत बताना बाबा।
हमें छोड़कर बीच में न जाना बाबा।
देख रहे जैसे युग पीछे,
लटक रहें मुरझा के नीचे,
कांस सी सुगंधित कोमल तन,
बंधे उम्र का दुखड़ा खीचें,
हमें भूल जाने की ज़हमत न उठाना बाबा।
हमें छोड़कर बीच में न जाना बाबा।।
राकेश चौरसिया
(बाबा को समर्पित रचना)