हमें गिला ही नही
* हमें गिला ही नहीं (ग़ज़ल) *
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जिसे चाहा कहीं मिला ही नहीं,
मिला जो हैं हमें गिला ही नहीं।
सभी कहते यहाँ उसे फिक्र है,
कभी मन मे रचा बसा ही नहीं।
जफ़ा ने खूब रुलाया हमें,
किसे ऐसी मिली सजा ही नही।
परायों ने तला उठाया सदा,
सखा ने की दिया वफ़ा ही नही।
कहाँ पर है छिपी सनम बेवफा,
मगर कोई दिखा दफ़ा ही नहीं।
तुझे सीरत यहाँ वहाँ देखता,
मिला है बात का सिरा ही नहीं।