हमें गर छुआ तो मुहब्बत न होती
हमें गर छुआ तो मुहब्बत न होती
सुबह शाम तेरी इबादत न होती
निहारे मुझे इक नजर यूँ न हमको
बताऊँ तुझे सच नज़ारत न होती
दवा इश्क की आज मेरी बना तू
बिना आपके मैं इमारत न होती
अगर हम चले साथ दोनों न होते
दिलों में सदा को सलामत न होती
जहाँ से मिली आज ठोकर बहुत पर
डिगे हम न ऐसी जहानत न होती