हमें कब तलक आजमाते रहोगे
हमें कब तलक आजमाते रहोगे
गिराते रहोगे उठाते रहोगे
बचाओगे कैसे मुहब्बत से दामन
अगर आप नज़रें मिलाते रहोगे
कि बेकार हो जायेगी सब दुआएँ
अगर दूसरों को सताते रहोगे
यक़ीनन अदावत ही बढ़ती रहेगी
समंदर जो खारा पिलाते रहोगे
मुआफ़ी न देगी कभी आदमीयत
जो हक़ दूसरों का दबाते रहोगे
किसी दिन ये कट जायेगा देख लेना
जो सर अपना यूँही झुकाते रहोगे
मुहब्बत की दौलत भी है ख़ूब ‘माही’
बढ़ेगी ये जितनी लुटाते रहोगे
माही