हमें उससे नहीं कोई गिला भी
हमें उस से नही कोई गिला भी
जो अब रखता नही है वास्ता भी
मोहब्बत का मरज़ भी क्या मरज़ है
कहीं मिलती नही इसकी दवा भी
मुझे पूछा है मेरे तजरुबों ने
मोहब्बत करके कुछ हासिल हुआ भी
मैं अपने दिल से हूं मजबूर वरना
बहुत से लोग हैं तेरे सिवा भी
वफा पर नाज़ था जिसकी ऐ आतिफ़
खबर क्या थी वही देगा दगा भी
इरशाद आतिफ़ अहमदाबाद