“हमें इश्क़ ना मिला”
हमें वो “इश्क़” ना मिला,
हमें वो “प्यार” ना मिला,
झूठे इस “संसार” में,
हमें वो “यार” ना मिला।
शायद हम, उस काबिल नहीं,
चमकते “चांद” सा,
कोई हमें दीदार ना मिला,
सोचते हैं क्या करें?
इस झूठे “संसार” मे,
कैसे जीए बीन तेरे ?
मर-मर के “इन्तजार” में।
करूं मैं किससे शिकायत?
तेरी खुदाई का,
मिला न कोई सुनने वाला,
शिकायत, तेरी “जुदाई” का।
इक “सवाल” है उस,
बेरहम “दिवानी” से,
पूछ के बता दें ऐ बेवफा,
मुश्किल जमाने से।
वादा किया,
तो निभा ना सकी,
फिर बाधा क्यों मुझे,
जालिम “जमाने” से,
दिल भी हमारा “शीशा” हैं,
कोई “पत्थर” तो नहीं,
फिर मैं क्यों करूं शिकायत,
उस “पगली दिवानी” से
✍ राकेश चौरसिया