हमें आपका
हमें दिल आपका छलना क्यूँ नहीं आया
नमक घावों छिड़कना क्यूँ नही आया
खिले जब जिन्दगी तेरी उन गुलाबों सी
कंटक के बीच खिलना क्यूँ नही आया
धरोहर वो समझते है हमें अपनी
मगर हक को जताना क्यूँ नही आया
बहस मी टू छिड़ी है जब जहाँ मेरे
विरोधों को जताना क्यूँ नहु आया
दिखा जब अक्श तेरा आयना बन मुझको
तुझे तब रूह बसना क्यूँ नही आया