हमीं बैठे रहे देर तलक
हमीं बैठे रहे बड़ी देर तलक
उनको न आना था न वो आए
उस पुर नूर सुबह की बात ही अलग
खिड़की से कोई फूल वो जब दे जाए
हम उठते गिरते रहे दरियाई लहरों की तरह
किसी को फिक्र हो गर मेरी तो संभाल जाए
~ सिद्धार्थ
हमीं बैठे रहे बड़ी देर तलक
उनको न आना था न वो आए
उस पुर नूर सुबह की बात ही अलग
खिड़की से कोई फूल वो जब दे जाए
हम उठते गिरते रहे दरियाई लहरों की तरह
किसी को फिक्र हो गर मेरी तो संभाल जाए
~ सिद्धार्थ