Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Apr 2018 · 5 min read

हमारे समाज में बच्चे।

हमारे समाज में दिनों- दिन हिंसा एवं अपराध बढ़ते चले जा रहे हैं हिंसा एवं अपराध से सबसे अधिक मासूम बच्चे प्रभावित होते हैं। इससे न केवल उनकी मानसिकता प्रभावित होती है, वल्कि उनके स्वाभाविक विकास विकास पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। इससे पहले हमारे नौनिहालों का जीवन ही खतरे में पड़ जाये , बच्चों के अभिभावकों को सचेत होने की परम अवश्यक्ता है।
हमारे मासूम बच्चों को उनका बचपन चाहिए मखमली हरी-भरी धरती, उड़ने को खुला अनंत आकाश, आंखों में सतरंगी इंद्रधनुषी एवं उनके लिए सुरक्षित वातावरण एवं माहौल… लेकिन आज कहां हैं उनके लिए ऐसा परिवेश एवं ऐसा वातावरण ? यदि हम अभिभावकों के नज़रिए से देखें, तो देश की सुरक्षात्मक प्रगति के बावजूद आज हमारे बच्चे असुरक्षित वातावरण में पलते बढ़ते नजर आरहे हैं, आतंक एवं हिंसा का नज़ारा उनके चारो तरफ पसरा पड़ा है और वे उन्हें देख रहे हैं। अभिभावक चिंतित, परेशान व अनिश्‍चितता में होने के साथ ही साथ ही साथ विवश भी हैं कि उन्हें कैसे सुरक्षा प्रदान किया जाये? आज समाज में चारो ओर तोड़-फोड़, चलती गाड़ियों पर बरसते पत्थर, ट्रेनों में बम धमाके, स्कूल ट्रिप की बसें नदी में गिरते, बहते, मरते बच्चे… ऐसी अनेकों हृदयविदारक घटनाओं के दृश्य आज हमें अक्सर ही देखने को मिलते हैं एवं उसके बाद ख़बरों का सिलसिला मासूम नौनिहालों के मन को इस हद तक प्रभावित करता है कि या तो वे प्रश्‍नों की झड़ी लगाकर भय के प्रति आश्‍वस्त होना चाहते हैं कि उनके साथ या उनके परिवार के साथ तो ऐसा कुछ नहीं घटित होने वाला है। इस तरह की बातों से बच्चे डर जाते हैं या फिर अन्दर ही अन्दर सहम जाते हैं। यदि बच्चा प्रश्‍न पूछता है, तो उसे आश्‍वस्थ भरा उत्तर देना कठिन हो जाता है यदि वह चुप रहता है, तो उसकी मानसिक व शारीरिक प्रतिक्रिया रोग का रूप धारण कर सकती है।
ऐसा नहीं है कि हमारे समाज में अच्छे लोग नहीं हैं, जहाँ बुरे लोग हैं तो अच्छे लोग भी हैं। कहां से हम पैदा करें ऐसा वातावरण कि जिसमे हमारे बच्चों का सुरक्षित विकास हो पाये? हालांकि आज के समय में ज्यादा तर शिक्षित अभिभावक अपने बच्चे को सही मार्ग दिशा दिखलाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। इन सबके लिए हम उन्हें सिखाते हैं- * कि अनजान व्यक्ति से बात मत करना। * ज़रूरत हो तो पुलिस से बात करना। * किसी अनहोनी की स्थिति में पुलिस से तुरंत सम्पर्क करना इत्यादि-इत्यादि।
लेकिन आज के समय में ऐसे हालात हैं कि अपने बच्चे की सुरक्षा केवल हमें ही देखना है। जब हम बच्चों को सच्चाई और ईमानदारी का पाठ पढ़ाते हैं, उन्हें एक अच्छा इंसान या नागरिक बनने के लिए प्रेरित करते हैं, उस समय हमारा मन शंकित हो उठता है कि क्या वास्तव में आज के इस धूर्त-चालाक या हिंसक माहौल में वह क्या ऐसा बन पायेगा? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि आदर्शों का पालन करते-करते हमारा बच्चा समाज में हमेशा अन्याय का ही शिकार बन कर उसे सहता रह जाए?
एसे बातों के लिए हमारे अभिभावकों बाल मनोवैज्ञानिक मनोचिकित्सक द्वारा बताए गए कुछ महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देंने की आवश्यकता है*- दोषारोपण बहुत ही सहज होता है, किन्तु क्या हम अपने आप को पूरी तरह से निर्दोष कह सकते हैं? हिंसा का भय बच्चों में दिनों दिन बढ़ता चला जा रहा है, किन्तु आज कोई भी अभिभावक इस विषय से अनजान नहीं हैं। क्यों अभिभावकों द्वारा दिनभर टीवी देखा जाता हैं। मीडिया से तो अति अनावरण मिलता है। यदि हमें अपने बच्चों को बचाना है, तो टीवी देखना कम करना पड़ेगा, ख़ासकर ऐसे दृश्य, जिनसे बाल मन प्रभावित होता हो। समाचार देखे लेकिन मित्र-परिवार के साथ उनकी ज़्यादा चर्चा बच्चों के सामने न करें। न्यूज़ में और भी बहुत कुछ आता है. * प्रश्‍न पूछे जाने पर आप जवाब इस तरह दें कि उनका बाल मन भयभीत न हो। * अपनों की चिन्ता बड़ों की तरह ही बच्चों में भी होती है, अत: जवाब ऐसा हो कि उनका मन आश्‍वस्त हो जाए एवं वह दूसरी ओर अपना मन लगा सकें। * हिंसा, तोड़-फोड़ या ब्लास्ट जैसे माहौल में दूसरी बातें करें, जो बालमन के अनुकूल हों। * जवाब सरल और सुलझा हुआ दें, ताकि उसका मन भी हल्का रहे। * जवाब देते समय बात प्रासंगिक है या अप्रासंगिक इस बात को भी ध्यान में रखें। * बच्चे अक्सर अपने माता , पिता, भाई या बहन के प्रति सबसे पहले शंकित होते हैं, वोह घर आ जाएंगे ना? उन्हें तो कुछ नहीं होगा ? आदि जैसे अनेकों प्रश्‍नों का उत्तर सकारात्मक होना चाहिए। * यदि बच्चा थोड़ा बड़ा है, तो उसे आत्म अनुभव करा दीजिए। * जब वह देखेगा कि घर के बाहर भी सब कुछ सामान्य है, तो उनका डर अपने आप ही निकल जाता है। * थोड़ा-बहुत डर तो हर बच्चे में होता है। चिन्ता तब होती है, जब यह सीमा से अधिक हो जाता है। * बड़े बच्चों से तो आतंकवाद या सुरक्षा जैसी समस्याओं पर भी स्वस्थ दृष्टिकोण से विचार-विमर्श किया जा सकता है। * मीडिया की प्रत्येक बात को यथा स्वरूप नहीं लेना चाहिए, क्योंकि वहां ज़रूरत से ज़्यादा ही चर्चा हो जाती है। * बार-बार वही बातें दोहराई जाती हैं. ऐसे में बच्चे समझने लगते हैं कि यह घटना चार दिनों से घटती हो रही है। * हम बाहरी दुनिया को तो नहीं रोक सकते, लेकिन हम उन घटनाओं और स्थितियों के प्रति उचित दृष्टिकोण को सामने ज़रूर ला सकते हैं और बच्चों को आत्म सुरक्षा का पाठ ज़रूर पढ़ा सकते हैं। * साथ ही साथ एक स्वस्थ सोच एवं सकारात्मक माहौल बनाने का प्रयास भी अवश्य कर सकते हैं। आख़िरकार बच्चे हमारे समाज की धरोहर एवं हमारा भविष्य दोनों ही हैं।

जब हम कहते हैं कि आज का जगत हमारे कल का भावी जगत है, इसका क्या अर्थ है? आज का मनुष्य एवं उनका योगदान ही भविष्य का जगत बनेगा एवं वही उनकी अपनी जीवन शैली होगी। शायद आज के बयोवृद्ध व्यक्ति भविष्य में न रह जायें, लेकिन आज के बच्चे भविष्य में हमारे समाज के नागरिक होंगे। अत: यह स्वाभाविक ही है कि हम वर्तमान में बच्चों का सुन्दर एवं शालीन स्वभाव निर्मित कर सकते हैं उन्हें उच्च मूल्यों का आदर्श एवं विचार महान हों तो निश्चय ही हम उनका एक सुन्दर एवं उत्कर्ष भविष्य निर्माण की आशा कर सकते हैं।

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 2 Comments · 232 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
3-“ये प्रेम कोई बाधा तो नहीं “
3-“ये प्रेम कोई बाधा तो नहीं “
Dilip Kumar
हर पल ये जिंदगी भी कोई ख़ास नहीं होती।
हर पल ये जिंदगी भी कोई ख़ास नहीं होती।
Phool gufran
वेलेंटाइन डे
वेलेंटाइन डे
Dr. Pradeep Kumar Sharma
ममतामयी मां
ममतामयी मां
SATPAL CHAUHAN
निःशुल्क
निःशुल्क
Dr. Kishan tandon kranti
आसमानों को छूने की चाह में निकले थे
आसमानों को छूने की चाह में निकले थे
कवि दीपक बवेजा
3014.*पूर्णिका*
3014.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
बाल कविता: मुन्ने का खिलौना
बाल कविता: मुन्ने का खिलौना
Rajesh Kumar Arjun
जिस दिन हम ज़मी पर आये ये आसमाँ भी खूब रोया था,
जिस दिन हम ज़मी पर आये ये आसमाँ भी खूब रोया था,
Ranjeet kumar patre
प्यारा बंधन प्रेम का
प्यारा बंधन प्रेम का
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
सोनेवानी के घनघोर जंगल
सोनेवानी के घनघोर जंगल
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
सफ़र में लाख़ मुश्किल हो मगर रोया नहीं करते
सफ़र में लाख़ मुश्किल हो मगर रोया नहीं करते
Johnny Ahmed 'क़ैस'
*अभी तो रास्ता शुरू हुआ है.*
*अभी तो रास्ता शुरू हुआ है.*
Naushaba Suriya
तस्वीर देख कर सिहर उठा था मन, सत्य मरता रहा और झूठ मारता रहा…
तस्वीर देख कर सिहर उठा था मन, सत्य मरता रहा और झूठ मारता रहा…
Anand Kumar
प्रेम और आदर
प्रेम और आदर
ओंकार मिश्र
*स्वतंत्रता आंदोलन में रामपुर निवासियों की भूमिका*
*स्वतंत्रता आंदोलन में रामपुर निवासियों की भूमिका*
Ravi Prakash
'मन चंगा तो कठौती में गंगा' कहावत के बर्थ–रूट की एक पड़ताल / DR MUSAFIR BAITHA
'मन चंगा तो कठौती में गंगा' कहावत के बर्थ–रूट की एक पड़ताल / DR MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
आजकल अकेले में बैठकर रोना पड़ रहा है
आजकल अकेले में बैठकर रोना पड़ रहा है
Keshav kishor Kumar
हम कैसे कहें कुछ तुमसे सनम ..
हम कैसे कहें कुछ तुमसे सनम ..
Sunil Suman
खुदा ने तुम्हारी तकदीर बड़ी खूबसूरती से लिखी है,
खुदा ने तुम्हारी तकदीर बड़ी खूबसूरती से लिखी है,
Sukoon
केवल भाग्य के भरोसे रह कर कर्म छोड़ देना बुद्धिमानी नहीं है।
केवल भाग्य के भरोसे रह कर कर्म छोड़ देना बुद्धिमानी नहीं है।
Paras Nath Jha
जय भगतसिंह
जय भगतसिंह
Shekhar Chandra Mitra
वर्तमान समय मे धार्मिक पाखण्ड ने भारतीय समाज को पूरी तरह दोह
वर्तमान समय मे धार्मिक पाखण्ड ने भारतीय समाज को पूरी तरह दोह
शेखर सिंह
मोहब्बत
मोहब्बत
Shriyansh Gupta
■ सर्वाधिक चोरी शब्द, भाव और चिंतन की होती है दुनिया में। हम
■ सर्वाधिक चोरी शब्द, भाव और चिंतन की होती है दुनिया में। हम
*Author प्रणय प्रभात*
***वारिस हुई***
***वारिस हुई***
Dinesh Kumar Gangwar
*गलतफहमी*
*गलतफहमी*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
ग़ज़ल/नज़्म - दिल में ये हलचलें और है शोर कैसा
ग़ज़ल/नज़्म - दिल में ये हलचलें और है शोर कैसा
अनिल कुमार
पत्थर की लकीर नहीं है जिन्दगी,
पत्थर की लकीर नहीं है जिन्दगी,
Buddha Prakash
💐अज्ञात के प्रति-142💐
💐अज्ञात के प्रति-142💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
Loading...