हमारे ये पर्व !जिनमें छिपा है हमारे लिए संदेश!
सम्मानित पाठकों, आज हम होली के उल्लास में सराबोर हो रहे हैं, इस पर्व की पूर्व संध्या पर हम सबने होलिका को दहन किया है! ऐसे ही हम दशहरे पर रावण -कुंभकर्ण -विभीषण !का भी दहन करने की रश्म निभाते रहे हैं, युग बीत गए, शताब्दियों से हम यही करते चले आ रहे हैं! लेकिन हर युग में हर शताब्दी में कोई ना कोई किरदार इनके जैसा आचरण करने लगता है, लेकिन जलाते हम इन्हीं किरदारों को हैं जो आज हमारे मध्य हैं ही नहीं!बस हम उनके पुतलों को जला कर रश्म आदाईगी करते चले आ रहे हैं! अनंत काल से, यह बेजुबान पुतले जलाए जाते हैं, और हम उत्सव मना कर खुशी खुशी घर आकर फिर से लग जाते हैं वही सब कुछ करने, जो उचित नहीं है,या जिसके किए जाने से किसी का ना किसी का अहित हो जाता है!
जरा गंभीरता से विचारिये की हमारे कृत्य के लिए भी तो कोई हमें भी इसी श्रेणी में रख कर आंकता/समझता होगा, फिर क्यों ना वो हमें भी अपने अंतर्मन में इसी प्रकार से दण्डित करने का अहसास करके हमें दिली बद्दुआएं देकर अपने मन को शांति प्रदान करता होगा! हमें शायद इस बात का भान नहीं रहता, लेकिन जब जब हम पर कोई विपत्ति, कोई रोग बीमारी, कोई आफत/समस्या आती है तो क्या हम यह अनुभव कर पाते हैं कि यह किस कारण से हो रहा है!बस अपनी पीड़ा को बांटने एवं उससे उबरने में सहायता की अपेक्षा करते हुए दीन हीन भावना से अनुनय विनय करने लगते हैं!
काश हम विचार करके अपने दायित्वों को निभाते, तथा किसी के हित अहित का ख्याल रख कर अपनी आवश्यकताओं को अपने सामर्थ्य के अनुकूल सीमित रख कर, दूसरों के हकों पर डाका न डालने का प्रण लें!
शायद यही हमारा प्रायश्चित भी हो और हमारे बुजुर्गों के द्वारा बनाए गए इन पर्वों का संदेश भी यही रहा हो,जिसे हमने भूलाकर सिर्फ रश्म आदाईगी तक सीमित कर दिया है!
आइए आज हम भी इस पर्व पर अपनी किसी बुराई, किसी कमी को भी इस पवित्र अग्नि में डाल कर उसका दहन करने का एक कदम उठाएं! शायद यही इस पर्व को मनाने का सार्थक प्रयास हो! सादर शुभकामनाओं सहित! होली की हार्दिक बधाई।