हमारे बाबू जी (पिता जी)
सपने में आये थे भैया आज हमारे बाबू जी।
बालकनी से देते थे आवाज़ हमारे बाबूजी।
उम्र गुज़र जाने पर भी जो जान नहीं हम पा पाये,
खोल रहे थे सपने में वो राज़ हमारे बाबू जी।
अक्सर जिन कामों का हम एहसान जताया करते हैं,
बिना बताये करते थे वो काज हमारे बाबू जी।
सबको खुशियाँ देते थे वह सबसे खुशियाँ पाते थे,
नाज़ उठाये हम सबके, थे नाज़ हमारे बाबू जी।
सब पर सब कुछ होने पर भी सबकी पूर नहीं पड़ती,
ढकते थे ख़ुद सारे घर की लाज हमारे बाबू जी।
बचपन से ले मृत्यु तलक गुरबत में जीवन काटा था,
नहीं किसी के हुए मगर मुहताज हमारे बाबू जी।
काट सभी लेते हैं जीवन जो दुनिया में आये हैं,
सिखलाते थे जीने का अंदाज़ हमारे बाबू जी।
– रमेश ‘अधीर’
चन्दौसी ( उत्तर प्रदेश)
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