हमारी माँ
जब खिलता है नव कोपल, स्त्री की फुलवारियों में |
माँ बनकर बदल देती करुण रुदन को, मधुर किलकारियों में |
माँ कराती है परिचय, नव कोपलों का सृष्टि से |
कोमल उंगलियो को पकड़,चलना सीखाती है राहों पे |
अहसास कराती ठंडी रेत- सा, जीवन की शुष्क धाराओं में |
खुशियाँ ही बिखेरती सदा , बचपन की बगिया में |
माँ असीम हैं, माँ निर्बाद हैं, माँ त्याग की मूरत हैं |
माँ जैसे इस दुनिया में, कोई और न मूरत हैं |
माँ वेद हैं, माँ उपनिषद हैं, माँ ही हैं प्रथम गुरु का ज्ञान |
माँ आदि हैं, माँ अनंत हैं, जो दे देवताओं को भी जीवनदान |
कष्टों में ईश्वर से पूर्व, याद आए ममतामयी माँ |
इन आम लफ्जों में बयाँ नहीं, ऐसी जीवनदायिनी माँ |
हे मानव ! बना अगर जो तू कृतघ्न, घिरा रहेगा तू पीड़ाओं में |
कृतज्ञ होना होगा तुझे, माँ के आँचल की गहराइयों से |
माँ को दे खुशियाँ सदा, मत भूल उसके निःस्वार्थ प्रेम को |
माँ नहीं तो कुछ नहीं, मान इस सच्चाई को |
निश्छल माँ का कोमल मन, रोम-रोम में बसा प्रेम का सोना |
अद्भुत माँ का रूप सलोना, नमन करें जिसे मन का हर कोना |