हमारी बात क्या हुई
तेरी याद न आए तो फिर रात क्या हुई,
तेरा दर्द न आए तो फिर बात क्या हुई।
तेरे हर जुल्म सह लेंगे अब तो हम भी,
दिल की धड़कन में मेरी बात क्या हुई।
दिल छुपा लेंगे गैरो की नजरों से हम,
दिल पर किसी और का हक,बात क्या हुई।
बोल देते दिल अभी तक किसी का नही,
फिर हमें तड़पाने की यह बात क्या हुई।
हमे भूल भी सकते थे गर यह ख्याल थे,
उजड़े हुए चमन में हमारी बात क्या हुई।
✍ गणेश देवासी नरपुरियां