#पृथ्वी को बचाना है#
कितनी सुन्दर कितनी प्यारी,
है ए धरा हमारी।
ईश्वर ने सौंपी हम सबको,
इसकी जिम्मेदारी।
जिस पृथ्वी पर खेल कूद कर,
हम सब बड़े हुए हैं।
जिसकी ममता की छांव में,
हम महफूज हुए हैं।
पृथ्वी मां की ममता को हम
हरगिज़ न ठुकराएंगे।
उस मां के आंचल को हम,
वन उपवन से सजाएंगे।
ऊंचा पर्वत मुकुट है मां का
पेड़ और पौधे गहना
हरियाली है शोभा मां की,
नदी समुद्र हैं टीका।
भांति -भांति के फूलों से,
मां का उपवन है महका।
हरे हरे हैं खेत यहां पर,
हैं तालाब और झरना।
इसी के अन्न और जल को खा पीकर,
बढ़ता बच्चा – बच्चा ।
पृथ्वी से अस्तित्व हमारा ,
पृथ्वी से है मिलता जीवन।
रहे सुरक्षित धरा हमारी,
हम सबको लेना होगा प्रण।
अपने लोभ में अंधे होकर,
हमने हथियार उठाया।
जाने अंजाने मे हम सबने ,
मां को दुख पहुंचाया ।
पृथ्वी को बचाना है तो ।
एक कानून बनाना होगा।।
एक पेड़ जो काटे कोई।
उससे दस लगवाना होगा
रूबी चेतन शुक्ला
अलीगंज
लखनऊ