हमारी पुरानी महान फिल्मों को बख्श दो …
खुदा जाने बॉलीवुड को लगा ,
ये कैसा रिमिक्स और सिक्वेल बनाने का अज़ार ।
पुराने ज़माने की बेजोड़ और अमर ,
फिल्मों पर चिपका कर इन्हें कर देते बेकार ।
यह तो हकीकत है की इनसे ,
लाख कोशिश करें ऐसी कारीगरी होने वाली नहीं।
वो तो पैदाइशी और समर्पित कलाकार थे,
इनमें वो बात कभी आने वाली नहीं ।
हिंदी फिल्मों का स्वर्ण युग उस काल ,
को यूं ही नहीं कहा जाता।
फिल्मों की पटकथा,संवाद ,अदाकारी ,गीत संगीत का ,
वो बेजोड़और खूबसूरत संयोजन भुलाए नहीं भूलता ।
उम्दा थे तभी तो सीधा दिल पर उतर गए ,
और जब तक दुनिया तब तक कायम रहेंगे ।
और आज की फिल्में हिंसा ,गाली गलौज और अश्लीलता से भरी हुई ,
यह सब रेत की लकीरों की तरह मिट जायेंगे ।
अपना तो कुछ है नहीं तुम्हारे पास ,
जो कुछ है सब घटिया और नापाक ।
मगर मेहरबानी कर हमारी अमर और महान फिल्मों को तो न करो अपनी करतूतों से नापाक ।
देवदास,उमराव जान और अब बैजू बावरा ,
को दुबारा बनाकर तुमने पिष्ट पेंशन किया ।
अब रामायण और महाभारत को तो बख्श दो ,
जिसके निर्माण का तुमने निर्णय लिया ।
तुम्हारी घटिया फिल्मों ने तो पूरे समाज को ,
एक बदबूदार डस्ट बीन बना रखा है ।
अब कम से कम हमारे देश की अमर धरोहर को ,
तो बख्श दो जिन्होंने समाज में मानवता को बचा रखा है।
तुम्हें जो करना है करो ,
मगर हमारे देश की संस्कृति ,सभ्यता और वेद ,
पुराणों को छूने का तुम्ही कोई अधिकार नहीं।
उस पर अपने भ्रष्ट और चरित्रहीन अदाकारों को ,
इसमें भागीदार बनाओ हमें ये स्वीकार नहीं।