हमारी तिश्नगी ने ग़म पिया है
हमारी तिश्नगी ने ग़म पिया है
तभी मर मरके दिल अपना जिया है
तिरी यादों को हम कितना भुलाए
भुलाके ख़ुदको ग़म इतना लिया है
रफ़ू कर कर के कपड़े तन छुपाया
किसी ने कब यूँ ज़ख्मों को सिया है
उदासी देख चेहरे पर सभी ने
ये पुछा ग़म तुझे किसने दिया है
नज़ारे और ही थे उन दिनों के
अभी तन्हाई है और बस दिया है
मिला जब साथ ये जज़्बाती मुझको
धड़कने फिर लगा अपना जिया है
जज़्बाती