हमारा सफ़र
वो बचपन की यादें भुलाई ना जाएं ,
कैसे गुजरी थी अपनी बताई ना जाए ।
पतंगे भी हमने उड़ाई बहुत थी ,
काटी किसी ने तो लड़ाई बहुत की ।
मौहल्ले का खेलते हुए चक्कर लगाना,
दोस्तों को ढूंढना,तो कभी छिप जाना ।
वो गिल्ली वो डंडे , कभी फोड़ी थी मटकी ,
कभी तो किसी ने खिलाई थी पटकी ।
कहां भूल पाए हैं वो कंचे रंग बिरंगे ,
आपस में जिनसे हो जाते थे दंगे ।
आधी दुपहरी स्कूल से घर आना,
कुछ समय खेल कर फिर वापिस जाना ।
ना वर्दी ना कुर्सी ना बस्ते थे भारी ,
लौटा दो मुझको वही जिंदगी प्यारी ।
वो खेतों में जाना , पपीरी बजाना ,
नहीं भूल पाए वो गुजरा जमाना ।
बाहें फैलाकर वो बारिश में नहाना ,
कागज की कश्ती पानी में चलाना ।
उड़ता था दिल ये बड़ा बेफिकर था,
बहुत खूबसूरत हमारा सफर था ।
मंजू सागर
गाजियाबाद