हमारा संघर्ष
हमारा संघर्ष
अवसर तो हमने 20 वीं सदी से पहले भी आजमाए थे। तरक्की,संघर्ष,सफलता के परचम तो हमने उससे पहले भी कई बार फहराए थे।
परंतु इस त्रासदी से पूर्व हम अपने जीवन में कभी इतने बेबस तो न कहलाए थे।
यह एक मोड़ है,जीवन का !!
जिसने हमें सहना सिखाया ।
बंद कमरों में रहना सिखाया ।
बाह्र्य आडम्बर के बिना जीवन को सार्थक बनाया,
हमें अपने आप से मिलवाया।
हमारे परिवारों को विश्वास,प्रेम, सहानुभूति से मिलवाया।
हमने काफी वर्षों पश्चात स्वयं को घर का सदस्य पाया ।
अब तो ऐसा लगता है कि इसने हमें जीना सिखाया।
इसने हमें बताया पहले हम क्या थे ••••••••• ? हमारी लालसा ने हमें क्या बनाया ? जब अपने ही कर्म देख ‘जी’ घबराया ••• तब प्रकृति के परिंदों के हाथ यह पैगाम पहुँचाया ।
पहले तुम करते थे मनमर्जी,
अब नहीं चलेगी तुम्हारी अर्जी। सौ सुनार तो एक लुहार की •••• अब आई बारी प्रकृति के देनदार की, वनपाखी और बेजुबानों की, जिनके घर इमारतों की खातिर उजाड़ दिए।
वन,पर्वत,रेगिस्तान भी सड़कमार्ग बनाने की खातिर बिगाड़ दिए ।
तुमने सड़कों को गाँव से जोड़ा, कितनी बार फ्लाईओवर बनाने की खातिर गरीब ने अपना घर छोड़ा।
हाय रे !! मानव तुमने इतना कोहराम मचाया फिर भी इन बेजुबानों ने तुमको न ठुकराया,
माना कि हमने बहुत कुछ पाया, परंतु जो खोया उससे मानव को इस धरती पर अपना वजूद समझ आया।