“हमारा वक़्त आया”
“जग ने औरत को बातों में खूब उलझाया,
बखाने हुस्न के लफज़ो में बरसों बहलाया,
ना हक दिया, ना आजादी कोई ,
बस गृहस्वामिनी कहके बुलाया,
छूती रही पाँव परमेश्वर कह पति को,
पति विष्णु हुए औरत को लक्ष्मी बताया,
जकड़ दिया संस्कृति और सभ्यता की ज़ंजीरों में,
औरत को शादी का बंधन समझाया,
चूड़ी,कंगना ,पायल,बिंदिया,
सिंदूर को उम्र की अपनी रेखा बताया ,
सुहागन की होती है सारी निशानी,
निशानियों में सर से पांव तक सजाया ,
नकेल, बेड़िया, हथकड़ियों में जकड़ने को,
स्वर्ण धातु का ‘जाल ज़ेवर’ बिछाया,
सहनशीलता,लज्जा है,औरत का गहना,
संस्कारों की दुहाई का घेरा बनाया,
चलती रहे चक्की जलता रहे चूल्हा,
इसीलिए औरत को अन्नपूर्णा बुलाया,
क्रोध का हक़ भी छोड़ा ना बाकी,
ममता के सागर में डुबकी लगाया,
खुद पर नियंत्रण तो रख ना सके,
औरत को पर्दे के नीचे छुपाया,
खून से सिंचकर जनम जिसने दिया,
हक़ उसका सभी एक पल में मिटाया,
संतानें भी हो गयीं पति की अमानत,
बाप का नाम ही, संग उनके चिपकाया,
परंपरा खुद की खातिर खुद ही बनाकर,
शास्त्रों के पन्नों का पाठ पढ़ाया,
चुप रहो तुम सदा ये मर्यादा सिखाया,
बंदिश नही पुरुषों पर कोई,
रिवाजों का ठेका औरत सिर मढ़ाया,
साज़-सज्जा,आभूषण,वस्त्रों का बोझ रख ,
घूंघट में ढक कर बहुत ही सताया ,
नृत्य है एक कला अगर वो करें ,
औरत ने किया तो निर्लज्ज बताया,
कहा व्रत करो होगी लम्बी उम्र,
सती कह पति संग चिता पर जलाया,
बदलते युग में बदली हैं औरतें,
माना समझ हमे देरी से आया,
जागें हैं आज सुनकर वो बातें ,
शक्ति वर्णन जब दुर्गा काली सुनाया,
औरतों ने पुरुषों से कदम जब मिलाया,
बल बुद्धि है कितनी जग को दिखाया,
हर क्षेत्र में सबसे आगे रहीं,
सफलता का अपने परचम फहराया,
वतने सुरक्षा में सरहद तक पहुँची,
खेलों में राष्ट्र का गौरव बढ़ाया,
बेहतर तरीके से देश चलाया,
राजनीति में स्वर्णिम इतिहास बनाया,
राष्ट्र सुरक्षा का भार अपने कंधों पर लेकर,
रक्षा मंत्रालय बखूबी संभाला ,
विदेश तक के फ़ैसले ले रहीं औरतें,
परिवर्तन है जो तुम्हें गृह में बिठाया,
उस रोज़ हँसी मैं जोर से,बीवी से डर है कितना,
पति ने जब किस्सा सुनाया,
खुश हूँ देख औरत ने अपना वजूद पाया,
ज़माने को बदलते वक्त का आईंना दिखाया “