हमारा फर्ज़
हमारा फ़र्ज
दूसरे देशों की सभ्यता, संस्कृति और रीति-रिवाज़ों को हम बड़ी शिद्दत से चाहते हैं;
लेकिन हम अपने ही घरों में अपने बड़े- बुजुर्गों के द्वारा दिए संस्कारों को भूल जाते हैं;
इसलिए तो हम आजकल साड़ी और कुर्ते-पजामे में नहीं, विदेशी कपड़ों में अधिक नज़र आते हैं।
हमारी पारंपरिक वेशभूषा को विदेशी लोग क्यों इतना चाहते हैं;
क्योंकि हम आज भी उनमें बहुत खूबसूरत नज़र आते हैं।
पर अफ़सोस हम तो मॉडर्न बनना चाहते हैं।
इसलिए तो आजकल हम रिश्ते घरों में जाकर नहीं……..
सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर निभाते हैं।
सोचे ! क्या हम भारतीय होने का फर्ज़ निभाते हैं ?
क्या हम सड़क सुरक्षा नियमों का पालन नियमित रूप से कर पाते हैं ?
कभी हम गाड़ी गलत दिशा में चलाते है;
तो कभी जल्दी में स्पीड लिमिट भूल जाते हैं।
आधे काम तो हम गाड़ी में फोन पर बात करते हुए ही निपटाते हैं।
यहां तक कि हम हेलमेट खुद की सुरक्षा के लिए कम अपितु ट्रैफिक पुलिस से
बचने के लिए लगाते हैं।
इसलिए तो हम सस्ते हेलमेट से काम चलाते हैं,अच्छा हेलमेट न खरीद हम पैसे बचाते हैं।
पर ! क्या पता हैं आपको,
भारत में हर वर्ष लाखों लोग सड़क हादसों के शिकार हो जाते हैं।
छोटी- सी लापरवाही से न जाने कितने घर बिखर जाते हैं।
सोचे ! क्या हम भारतीय होने का फर्ज़ निभाते हैं ?
हम तीनों राष्ट्रीय त्योहारों पर तीन रंग में रंगे कभी फेसबुक, कभी इंस्टाग्राम तो कभी ट्विटर पर नज़र आते हैं।
सड़कों के किनारों पर स्वच्छ भारत के पोस्टर बनाए जाते हैं।
पर अफ़सोस उन्हीं सड़कों पर गाड़ियों व बसों से खाली रैपर बाहर गिराए जाते हैं।
सोचे ! क्या हम भारतीय होने का फर्ज़ निभाते हैं ?
मेरी कविता को पढ़ने के बाद मनन कीजिएगा और फिर यह बताइएगा कि क्या आप
भारतीय होने का फर्ज़ निभाते हैं?
यदि हां,तो आप सच्चे अर्थों में भारतीय कहलाते हैं।
चलो! मिलकर कदम बढ़ाते हैं।आज से अपना फर्ज़ जिम्मेदारी से निभाने की कसम खाते हैं।
आभार सहित
रजनी कपूर