हमारा क्या है…
मेरी नई रचना….
हमारा क्या है…हम तो फ़कीर हैं …2
मरती है भुखों जनता यहाँ,
लेक़िन खिंचीं लक़ीर हैं …..
हमारा क्या है हम तो फ़कीर हैं …
श्याम और शमशाद पले थे,
उन मंदिर-मस्ज़िद के तले ।
आज दीवारें ऊँची उनकी,
दरवाज़े पे खड़ा पहरेदार है ।।
हमारा क्या है…हम तो फ़क़ीर हैं…
जिस गुलशन को फिजा प्यारी थी,
आज वो भी हुआ बेनूर है ।
ख़बर ना है चमन को इस बेवफ़ाई की,
जो है चौकीदार चमन का वही चोर है ।।
हमारा क्या है…..हम तो फ़क़ीर हैं ….
संजोया है किसने इस चमन को,
किसने इसे गुलज़ार किया है ।
उजाड़ने वाला क्या जाने,
जहाँ में वो किसका गुनहगार है ।।
हमारा क्या है…..हम तो फ़क़ीर हैं….
अल्फ़ाज़ ने उसके इस जहाँ को,
किया है इस क़दर भ्रमित ।
उस्ताद बना है इज्तिराब (अशांति)का,
समझें हैं ये अशफ़ाक(सहारा) हमारा असीर(कैदी) है ।।
हमारा क्या है …..हम तो फ़क़ीर हैं…..
“आघात” तुम्हें क्यूँ रहता दुखः
क्यूँ बैचैनी सी रहती है ।
क़भी तो बात समझ की कर लेना,
न कहना ये तो साँप की लक़ीर है ।।
हमारा क्या है…..हम तो फ़क़ीर हैं…..
मरती है भूखों जनता यहाँ…
लेकिन खिंचीं लक़ीर हैं…. हमारा क्या है ..हम तो …
आर एस बौद्ध”आघात”
अलीगढ़