हमसफ़र
एक ख़्वाब ही था तुम्हें पाना
जीवन में था हमेशा से ये डर
जो तुम्हें ना पाया मैंने
मुश्किल हो जाएगी जीवन डगर
आज तुमको जो पाया है
मन में हुई नई सहर
मैं तेरा रहूं, तू मेरी रहे
बनके रहें अब हमसफर
जो मैं बारिश सा बरस जाऊं
तुम रेत सी मुझे खुद में समेट लेना
मैं ख़्वाब तुम्हारे संझो लूंगा सारे
तुम कमियां मेरी भी ढक लेना
ये जीवन की नई शुरुआत है
तुम अब साथी हो, ये एक सौगात है
बस अब तुम्हें चाहना है
और तुम्हारी खुशियों को
हंसते हंसते कटे अब ये जीवन भर
–प्रतीक