हमसफ़र
जो हर पल साया बनकर
साथ तुम्हारे चलता था
नए-नए ख्वाबों की सूरत में
आंखों में तुम्हारी पलता था
कहां खो गई वो आंखें
जिन आंखों में था घर तेरा
राहें मुझसे ये पूछ रही
कहाँ गया हमसफर तेरा
जिंदगी तुझ पर बोझ बनी
लगता है तुम्हारी बातों से
कुछ तो है टूटा तुझ में
जो लहू छलकता आंखों से
जीने की ना कोई उम्मीद बची
कैसे हुआ ये हसर तेरा
राहे मुझसे ये पूछ रही
कहाँ गया हमसफर तेरा
आज भी न जाने कहां-कहां
ढुंढती है ये निगाहें उसको
चाह कर भी ना में रोक सका
ले गयी मजहबी हवाएं उसको
मंजिले मुझसे बिछड़ गयी
अधूरा रह गया सफर मेरा
राहे मुझसे ये पूछ रही
कहां गया हमसफर तेरा
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