हमसफ़र
हमसफ़र
ख्यालों की दुनिया से
अहसासों की हक़ीक़त तक
सफर में तुम हमसफ़र रहना ।
धड़कन की आहट से
रूह मिलन तक
सफर में तुम हमसफ़र रहना ।
उगते सूरज से
ढलती शाम तक
सफर में तुम हमसफ़र रहना ।
बिंदिया की चमक से
बुढ़ापे की लकीर तक
सफर में तुम हमसफ़र रहना ।
नाराज़ खामोशी से
बोलते अल्फाज़ तक
सफर में तुम हमसफ़र रहना ।
कोरे जीवन से
सिंदूरी स्याही तक
सफर में तुम हमसफ़र रहना ।
मेरे अस्तित्व से
सुहागिन अंत तक
सफर में तुम हमसफ़र रहना ।
गमों के रास्तों से
खुशियों की मंजिल तक
सफर में तुम हमसफ़र रहना ।
अर्धांगिनी रूप से
ममता स्वरूप तक
सफर में तुम हमसफ़र रहना ।
एक मै एक तुम से
‘हम’ के सफर तक
सफर में तुम हमसफ़र रहना ।
एक दूजे मे खोकर
एक दूजे को पाने तक
सफर में तुम हमसफ़र रहना ।
– रुपाली भारद्वाज