*** हमसफ़र….!!! ***
“” आ साथ चलते हैं…
प्रीत के रंग गढ़ते हैं,
न जाने इस सफ़र का, है अंत कहाँ…?
एक कदम तेरा होगा…
एक कदम मेरा होगा,
दम-खम कोशिश पुरजोर…
कुछ अपना होगा,
न जाने, अंजाने इस डगर का छोर है कहाँ..?
मुश्किलों का कुछ दौर होगा…
भ्रमित-मन का कुछ शोर होगा…!
ढलती उम्र का कुछ जोर होगा…
शायद मतलबी मन का कुछ फेर होगा…!
राह में हर शाम, अंधेरों का डेरा होगा…
नाकामी का ग़फलत कुछ फेरा होगा..!
पर…
” समझौता ” हमारे असफलता में,
एक सफल साज होगा…!
तेरे-मेरे प्रीत-आंगन से…
हर समस्या का समाधान होगा…! “”
“” आ साथ चलते हैं…
प्रीत के रंग गढ़ते हैं..!
जब चलते-चलते राहों में…
कुछ थकान हो जाए पांवों में,
बजाय अकेले जाने तुम…
साथ मुझे बुला लेना…!
राहों में कुछ कसक-सी दर्द हो…
बजाय खुद सह जाने तुम,
मुझे अपनी इशारों में जता देना…!
बंटकर दो हिस्सों में…
मुश्किलों के हर दौर ,
शायद…! इस सफ़र में…
कुछ पल के लिए कम हो जाए…!
हो सके सफ़र में, हम कुछ परेशान हों…
चल आज हम हाथ मिलाते हैं,
शायद…! तेरी-मेरी समझदारी से…
हर मुश्किल आसान हो जाए…!
आ हिस्सेदारी की बात छोड़…
साझेदारी की कुछ बातें करते हैं…!
चल… कुछ पल ही सही…
आ जीभर मुस्कुरा लें…!
शायद… कहूं या न कहूं…
मुझे कुछ मालूम नहीं,
लेकिन…
बस अब एक चाह है मेरा,
तेरे प्रीत की रंगों से…
हर सतरंगी शाम,
रोज-रोज आम़ हो जाए…!
ये जो, दो पौधे हैं…
आ इन्हें अपने रंगों में सजा लेंगे…!
जीवन की अनुपम फुलवारी में…
आ इन्हें बसा लेंगे…!
चलते-चलते जब कहीं धूप लगे, राहों में…
कुछ पल के लिए ही सही,
एक सुकून छांव इन्हें बना लेंगे…!! “”
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