“हमसफर”
जिस पथ पे चला ओ तो वीरान था ,
मै जाऊ कहा, मैं तो अनजान था।
कॉटे भी थे कंकड़ भी था ,
थोड़ी धूप भी थी थोड़ा छाव भी था ।
जिस पथ पे चला……………।
मैं तो चलता गया आगे बढ़ता गया,
कभी गिरता तो कभी संभालता गया।
मंजिल मेरी मिल जाएगी ,
फूल वीरानों में भी खिल जाएगी,
एक उम्मीद थी मन मे बिस्वास था।
जिस पथ पे चला……..।
चलते- चलते मिली एक ऐसी डगर,
मैं जाऊ कहा कुछ न आये नजर।
वही पे मुझे तेरा साथ मिला,
पथ में हो गया उजला- उजला।
जिस पथ पे चला……..।
मंजिल मेरी मुझको मिल ही गयी,
फूल वीरानों में भी खिल ही गयी।
तुमको ना लगे किसी की नजर,
सुक्रिया-सुक्रिया ऐ मेरे हमसफ़र।
जिस पथ पे चला…….।
सुनील पासवान कुशीनगर