हमने हिमायती के हाथो में खंजर देखा है,
हमने हिमायती के हाथो में खंजर देखा है,
खिलते गुलशन को होते हुए बंजर देखा है !
अपने अपनों के हाथो से खायी है शिकस्त,
हमने घूमिल होते ख्वाबो का मंजर देखा है !
इस्तमरारी कुछ भी नहीं खुदा की खुदाई में,
हुस्न और शबाब को होते हुए जर्जर देखा है !
अभिमान किस बात का करता है यहां प्यारे,
हस्टपुष्ट बाहुबल को भी होते पिंजर देखा है !
वक्त बदलते देर नहीं लगती ज़माने में यारो,
चींटी के द्वारा होते धराशायी कुंजर देखा है !!
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डी के निवातिया
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शब्दार्थ:
इस्तमरारी (सदा एक-सा रहने वाला)
कुंजर (हाथी)