हमने भी देखा था।
हमने भी देखा था,
वहाँ जाके उसका जीवन नीरस, बेबस, दीन-हीन था बड़ा।
जानें कैसी तृष्णा थी उसके हृदय में जो उसकी आँखें बता रही थी…
निष्कलंक था वह बेकार ही
प्रचलित हो गया था अपराधी के रूप में।
उसने अपनें सम्पूर्ण जीवन
को व्यतीत किया था सूर्य की धूप में।।
हमनें भी पूंछा था,
वहाँ जाके उस पर अपराध मिथ्या, अकारण ही था लगा।
जानें कैसा कौतूहल था उसके सीनें के अंदर जो उसकी साँसें बता रही थी…
बोलेने में था बड़ा असमर्थ ही
वह शायद था तेज भूख में।
झोपड़ी में ही पड़ा था जाता भी तो जाता
कहाँ वह गर्मी की लूक में।।
हमनें भी सोचा था,
वहाँ जाके मदद का पर उसकी जरूरतो का चिट्टा था बड़ा।
वह था असमंजस में बड़ा उसकें जीवन की परिस्थितियां बता रही थी…
हर रिश्ता ही था उसका
आज तक बस मिथ्या झूठ में।
सब ही सम्मिलित थे
उसके घर सम्पत्ति की लूट में।।
हमनें भी मांगा था,
उधार अपना जो कभी जरूरत पर उसको था दिया।
लाचार था बड़ा वह चुका ना पाता कर्जा उसकी मजबूरियाँ बता रही थी…
बडा परिश्रम किया था उसने
अपने जीवन की दौड़-धूप में।
दिखावे में था प्रसन्न वह वरना
सारा जीवन ही था झूठ-मुठ में।।
मैं भी गया था,
मिलने पर समाचार उसकी म्रत्यु का पास के शमसान में।
छोटे पुत्र ने दी थी चिता को मुखाग्नि उसकी सिसकियां बता रही थी…
अज्ञान था वह जीवन मरण को लेकर
प्रिय पुत्र था वह अपने पिता के जीवन में।
उसको बताया गया था घर पर कि
पिता जी जा रहे है भगवान के मिलन में।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ