हमने ना जाने क्या क्या पूर्वाग्रह संभाल लिए हैं!
हम जहाँ एक ओर,
आधुनिक युग में आ रहे हैं,
वहीं उतने ही,
अंध विश्वासों में जकड़े जा रहे हैं,
कभी कभी तो हम बेबस होकर,
मंदिर मस्जिद में मथा टेक ते हैं,
तो कभी ईश्वरीय सत्ता को ,
चुनौती देते दिखाई देते हैं,
हम कभी किसी के छींकने पर,
घर को लौट आते हैं,
तो कभी बिल्ली के रास्ता काटने पर,
वापिस लौट जाते हैं,
कभी किसी की बद दूआ से डर जाते हैं,
तो कभी किसी को धोखा दे आते हैं,
कभी सुनी सुनाई बातों पर भरोसा कर लेते हैं,
तो कभी अपने बुजूगों के कहे को अनसुना कर देते हैं,
घर का नल भी यदि टपकने लगे,
तो इसे शुभ संकेत नहीं समझते,
कव्वा घर की छत पर बोले तो,
किसी मेहमान के आने की आहट समझ लेते,
बर्तन हाथों से छूटे तो,
भोजन की कमी खटकती है,
सुहागन भरा बर्तन लेकर मिले,
तो शुभ संकेत दिखाई देती हैं,
कन्या जल भर कर आ जाए तो,
अच्छे लक्षण दिखाई पडते,
बर्तन यदि खटक गये तो,
झगडे के आसार हैं लगते,
हम इंसान होकर भी इंसान से परे हो गये हैं,
हम अपने नफे नुकसान में उलझे हुए हैं,
हमने तो ना जाने क्या क्या पूर्वाग्रह संभाल लिए हैं,
हमने तो अंध विश्वासों के दुराग्रह पाल लिए हैं।