हमने नहीं देखा
हमने नहीं देखा कभी चाँद को गर्म आग उगलते ।
हमने नहीं देखा कभी आफ़ताब को आँखें मसलते।।
किरणें हंसती रहती हैं फिर भी वो वचपन की तरह
दरख़्त नहीं देखे हमने कभी यारों ,परिंदों से जलते ।।
घूम घूमकर हवाएं लहराकर दौड़तीं हैं जमीन पर
पहाड़ों को नहीं देखा कभी अपनीं नीव से हिलते।।
मग़र शैलावों का शौक देखिये बहाकर ले जाने का
उन किनारों की तवाही पे नहीं देखा कभी पिघलते ।।
इस समुन्दर का पानी खारी हुआ सब सिसकते हुए
धार की आँखों में नहीं देखा “साहब”आंसू निकलते।।