हमनें पत्थरों को खुदा बनते देखा है।
हमनें पत्थरों को खुदा बनते देखा है।
आलीम ए इंसानो को शिर्क करते देखा है।।1।।
जो ख्वाब सजाती थी तेरा आंखों में।
उन बूढ़ी नजरों को बड़ा बेबस होते देखा है।।2।।
हां सच है हर चीज हद में अच्छी लगती है।
पर इश्क में इंसा को हदे पार करते देखा है।।3।।
जरूरी नहीं हर हंसता हुआ दिल खुश हो।
हमनें नज़रों को अश्क जज्ब करते देखा है।।4।।
सीखों कुछ इन छोटे छोटे उस्तादों से।
हमनें बच्चों को कुरान हिफ्ज करते देखा है।।5।।
वफा थी दोनो दिलों में फिर भी रंग ना लाई।
यूं दीवानों को बेबस होकर बिछड़ते देखा है।।6।।
यूं मौत से थोड़ी मोहलत मांगी जागने की।
हमनें कफन में खुली नजरों को सोते देखा है।।7।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ