हमदर्द तुम्हारा
तुम भटक ना जाओ इस जग में, मैं तुम्हें परखता रहता हूँ।
तुम अटक ना जाओ इस डर से, मैं तुम्हें बताता रहता हूँ।।
तुम मेरी हो अनमोल सखी, मैं तुम्हें सीखता रहता हूँ।
तुम ना जानो मैं कौन भला, जो तुम्हें मानता रहता हूँ।।
तुम भटक न जाओ इस जग में, मैं तुम्हें परखता रहता हूँ।
तुम बुरा ना मानो हैं प्रिये, मैं हर्षित हर्षित रहता हूँ।।
तुम जान चुकी हो ये मान चुकी हो, मैं तुम पे लट्टू रहता हूँ।
मैं तुम्हें बताने आया हूँ, कुछ राह दिखाने आया हूँ।।
तुम भटको ना तुम अटको ना, मैं तुम्हें जगाने आया हूँ।
मैं राह दिखाने आया हूँ, मैं बाह थामने आया हूँ।।
तुम मेरी हो कुछ खास सुनो, मैं हक ये जताने आया हूँ।
तुम गलत चली तो रोकेगा, मैं तुम्हें बताने आया हूँ।।
तुम दर्द किसी के कहदो ना, मैं दर्द छुपाने आया हूँ।
हमदर्द तुम्हारा आया हूँ, दुख-दर्द मिटाने आया हूँ।।
मैं स्नेह तुम्ही इसने पर न्यौछावर, करने को जहाँ में आया हूँ।
मैं अपनी सारी ममता को, तुझपे ही लूटाने आया हूँ।।
तुम राज कहीं बतलादो ना, मैं राज छुपाने आया हूँ।
हमराज तुम्हारा आया हूँ, हमराज तुम्हारा आया हूँ।।
तुम समझ तो लगी अरमान मेरे, मैं तुमसे क्या-क्या चाहता हूँ।
तुम भटक न जाओ इस डर से, मैं तुम्हें परखता रहता हूँ।।
ललकार भारद्वाज