हमको पास बुलाती है।
मिट्टी की भीनी भीनी सोंधी सी खुशबू…
हमको पास बुलाती है…!!!
चल गांव चलते है जहां मां…
आज भी हाथ से खाना खिलाती है…!!!
वो सरसों के पीले पीले खेत,
मन को कितना लुभाते थे…!!!
चोरी करने को हम गांव के,
गन्ने के खेत में जाते थे…!!!
दोस्तो मेले में जाने के,
हम सब एक से एक प्लान बनाते थे…!!!
फिर भी अपनी शिकयत रामू काका,
जानें कैसे घर को लाते थे…!!!
क्या याद है तुम्हें वो हमारा,
चुपके से नहर में नहाना…!!!
आम की बाग में पाक पाकिल्लों,
सबके के संग खेलना…!!!
संध्या होते ही दादी का,
सबको एक साथ बैठके,
खाने के लिए बुलाना…!!!
प्रत्येक शनिवार,इतवार,
दूरदर्शन पर फिल्मों को,
जबरजस्ती जाग कर देखना…!!!
बिजली जाने पर एक से,
सौ तक गिनतियों का गिनना…!!!
बीच की अंगुली को आंख बंद,
करके एक सीध में मिलाना…!!!
खेतों में जाकर चने का साग,
घर की हरी धनियां से बनी,
चटनी के संग अम्मा बुआ,
और दीदी के साथ खाना…!!!
होली आने पर घर घर घुसकर,
दादी चाची बुआ सभी को रंग लगाना…!!!
सावन में झूलों पर किनारे,
खड़े होकर झूले को हवा में तेज झुलाना…!!!
कितना मर्म,कितनी करुणा,
गांव में लोगों के ह्रदय में,
रहती थी एक दूसरे के लिए…!!!
बड़ा सुख मिलता था जब सभी लोग,
तैयार रहते गांव की बेटी को एक साथ,
मिलकर विदा करने के लिए …!!!
आज शहर के विकास ने,
ये सब हमसे छीन लिया है…!!!
बदले में हमे बेजान मोबाइल,
टीवी और इंटरनेट दिया है…!!!
लिखने को बहुत कुछ बाकी है,
लेकिन कहां मैं लिख पाऊंगा,
और लोगो कहां तुम पढ़ पाओगे…!!!
पर मेरी इस कविता को पढ़कर,
कुछ समय के लिए ही सही पर तुम,
अपनी पुरानी स्मृतियों में खो जाओगे…!!!
ताज मोहम्मद
लखनऊ