हबीब जालिब को समर्पित
हम मूर्दों के गांव में हों तो
केवल ज़िंदगी की बात करें
जब होने लगे हों सभी ख़ुदा
क्यों न आदमी की बात करें…
(१)
दीन और धरम का शोर कहीं
पागल हमें न कर डाले
अपने देश की सेहत के लिए
थोड़ी मौसिकी की बात करें…
(२)
वैसे भी सियासत से किसी को
कोई फ़ायदा-वायदा है नहीं
जो लोग अभी तक ज़िंदा हैं
खुलकर आशिकी की बात करें….
(३)
जो बदहाली में पैदा हुए
और बदहाली में ही जी रहे
आपको इंसानियत का वास्ता
कुछ उनकी ख़ुशी की बात करें….
(४)
जो हमारी जम्हूरियत के लिए
निहायत ही जानलेवा है
दानिश्वरों और फनकारों की
उसी ख़ामोशी की बात करें…
(५)
अक्लमंदी के बियाबान में
मासुमियत कहीं खोने लगी
ज़ुल्मत के इस दौर में ‘मितरा’
आओ रोशनी की बात करें…
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Shekhar Chandra Mitra
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