हनुमान वंदना/त्रिभंगी छंद
हनुमान वंदना
त्रिभंगी छंद
10/8/8/6
जय जय कपिराई,करहु सहाई,
कलिमल हरदम वार करें।
बहके मन चंचल, थकित बुद्धि बल,
अनजाने पथ कदम धरें।
तन विषय लपेटें, गजब चपेटें,
सने अंग सब ,अति पंका।
तिन आप जलादो,धीर धरा दो,
कभी जलाई, ज्यों लंका।
तुम केसरि नंदन,सब जग वंदन,
प्रभू राम तुम हृदय धरे।
नित संकट टारन,निशचर मारन,
आप सहायक, कौन डरे।
बल विद्या दीजे, विनती लीजे,
करहु कृपा कपि, कलम चले।
शुभ काज सॅंवारें, राम उचारें,
नाम लेत सब, विघ्न टले ।
जय जय हनुमंता, सुनहु तुरंता,
गुरुवर सम हो,हितकारी।
खलदल संहारो,धीर न धारो,
हुॅंकारो भर, किलकारी।
हो सदा सहायक, तुम कपि नायक,
तुम जग जननी,अति प्यारे।
सब संकट टारे, तुम रखवारे,
दास पुकारे, जल ढारे।
हनुमंत हठीले,होउ न ढीले
गदा चला दो,अब स्वामी।
रच छंद सनातन, तव यश गातन,
भागें निशचर, दल कामी।
यह छंद त्रिभंगी,जो सत्संगी,
रुचि रुचि दिन प्रति,मन लावें।
ते सदा सुखारी,समय गुजारी,
कृपा अंजनी,सुत पावें।
गुरू सक्सेना
16/4/24