हद
हद में रहे तो क्या ख़ाक देखोगे
पार करो इश्क़ का अंदाज़ देखोगे
पछताओगे ग़र किनारे बैठे रहे
डुबो जो समंदर के सब राज़ देखोगे
सीखोगे ज़िंदगी के नए सब रंग
नहीं तो तबीयत नासाज़ देखोगे
पा जाओगे ग़र कहीं हमे पास तो
ख़ुद को महफ़िल में सरफ़राज़ देखोगे
अजय को अब नहीं शिक़वा कोई
अब हमें तुम बस बे अंदाज़ देखोगे
अजय मिश्र