हथेली में चांद
“हथेली में चांद”
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झरोखों से दिखा जो चांद
फलक का चांद भी शरमा गया
झुकी महबूब की नजरें
उतर के चांद भी हथेली में आ गया!
ढली जैसे-जैसे चांदनी रात
फलक का चांद तो मुरझा गया
झुकी पलके उठी महबूब की
जमी का चांद और भी खूबसूरत हो गया!
तमन्ना जी भर के देख लू मैं चांद
फलक का चांद अमावस में कहीं खो गया
छुआ जमी के चांद को अपने
सिमट के आगोश में मेरी वो खो गया !
दिखा जब से तेरी हाथों का चांद
फलक का चांद भी तेरा दीवाना हो गया
हुई सितारों की शिकायत मुझसे
मेरा जो चांद था तेरी महबूबा का दीवाना हो गया!
मैंने भी कहा सुन लो सितारों तेरा चांद
चार पहर का है मेरा चांद आंठो पहर मेरा हो गया
तेरे चांद के होंगे हजारों दीवाने
पर मेरा चांद तो बस मेरा दीवाना हो गया
गगन की झील में डूबा फलक का चांद
जमीन का चांद मेरी आंगन में खिल गया
छिटकती चांदनी चांद की रात में
पर मेरे चांद के नूर से दिन में भी उजाला हो गया
***** सत्येन्द्र प्रसाद साह(सत्येन्द्र बिहारी)*****