हथियार…
हथियार मिटाते हैं इंसानियत,
लातें हैं भयावह तबाही ..
असीम शांति की ,
गुंज उठती हैं चीखें ..
दर्द भरी , कराहती आवाजें ..
बिखर जाते हैं इंसान ,
बन के मांस के लोथड़े ..
ज़मीन खून न से सनी ,
फिर न आँसू ही बचते हैं ..
न आहें , न कराहें ..
हंसी तो दूर की बात ,
एक आवाज को भी ;
तरस जाती है हवा भी ..
हथियार लाते हैं असीम शांति ,
पर दे नहीं पाते नव जीवन ..
ये संहार करते हैं बस संहार ,
सृजित करते हैं मृत्यु ..
इन्हे जीवन से बैर है ,
ये मृत्यु के दूत “हथियार ”
ऐसा न हो धरती से ,
हम अपनी आत्मरक्षा में ..
इनके सहारे मिट जाएं ,
मिटां जाएं इंसानियत ..
और छोड़ जाएं धरती पर ,
ये घातक हथियार…