हताश कोरोना
हताश कोरोना !
कोरोना हूँ।! हाँ मैँ कोरोना हूँ !
छोड़ा नहीं जग का कोई कोना हूँ।
ख़ूब हुड़दंग मचाया हर जगह।
जान लिया सब की बिलावजह।
क़यामत कह लोग मुझे है बुलाते।
मेरा नाम ले कर बच्चों को सुलाते।
डर से मेरे सब हो गये हैँ घरबन्द।
इबादत के भी हो गये हैं पाबन्द।
अब नहीं चल रहा है मेरा वो ज़ोर।
कड़ी तोड़ मुझे कर दिये कमज़ोर।
साँसें मेरी अब मेरा साथ छोड़ रही।
पुष्ट कमर देखो अब मेरा ये तोड़ रही।
सोच कर ये मुझे लगता है बहुत बुरा।
ख़्वाब तबाही का अब कैसे होगा पूरा?
मेरी आख़िरी साँसें हैं इंतेज़ार में तुम्हारी।
मुझे दूसरा इंसान चाहिये अब की बारी।
अब छोड़ भी दो अपना तुम ये घरवास।
आँखे बंद हो रही हैं, हो गया हूँ हताश।
© मो• एहतेशाम अहमद,
अण्डाल, पश्चिम बंगाल