हठधर्मिता से रखिए दूरी
प्राणी हठ धर्मी बनकर के,
कष्ट बहुत है जग में पाता।
सोच नियत तब उसकी होती,
भाव धैर्य का है घट जाता।।
हर इक प्राणी को ब्रह्मा ने,
सोच समझ कर खूब बनाया।
सकल जगत यह चले उचित पथ,
गुण दोषों का साज सजाया।
हर प्राणी के सुख वैभव का,
जोड़ा फिर कर्मों से नाता।
प्राणी हठ धर्मी बनकर के,
कष्ट बहुत है जग में पाता।।
उचित बुद्धि भी सबको देकर,
ज्ञान पंथ समुचित दिखलाया।
धैर्य प्रेम को मधु जीवन का,
अनुपम सा उपहार बताया।
ज्ञान चक्षु जो चले खोलकर,
उत्तम जीवन तत बन जाता।
प्राणी हठ धर्मी बनकर के,
कष्ट बहुत है जग में पाता।
फिर भी कुछ जग प्राणी देखो,
व्यर्थ अहम को हैं अपनाते।
नियत सोच के जाल पाश में,
निज जीवन को स्वयं फंसाते।
स्वयं कर्म को सही समझ कर,
बिना विचारे बढ़ता जाता।
प्राणी हठ धर्मी बनकर के,
कष्ट बहुत है जग में पाता।।
हठ धर्मी बनकर रावण ने,
सीता हर श्री को ललकारा।
ज्ञानी पंडित देखो कैसे,
कुल समेत प्राणों को हारा।।
ओम सदा ही सबसे कहता,
सुख दुख का है हठ से नाता।
प्राणी हठ धर्मी बनकर के,
कष्ट बहुत है जग में पाता।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
कानपुर नगर