*हटता है परिदृश्य से, अकस्मात इंसान (कुंडलिया)*
हटता है परिदृश्य से, अकस्मात इंसान (कुंडलिया)
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हटता है परिदृश्य से, अकस्मात इंसान
कठपुतली-सा नाचता, नचा रहा भगवान
नचा रहा भगवान, मनुज का भाग्य-विधाता
लिखता बही-रहस्य, कर्म का नूतन खाता
कहते रवि कविराय, टिकट झटपट है कटता
बीते जब दिन चार, सभी का आसन हटता
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 999761545 1