हक मिल जाए
सबको अपना हक मिल जाये, इतनी सी मैं बात करूंगा।
बच्चे बूढ़े संग मुस्काये, ,,,,,,,, इतना सबको पास करूंगा।।
गर्मी के मौसम में गर्मी, ,,,,,,,,,,, सर्दी के मौसम में सर्दी।
ताल तलैया सागर भर दे, बारिश में हो बारिश इतनी।
हो बसंत चेहरा खिल जाये, हर दिन को मधुमास करूंगा।
सबको अपना हक मिल जाये इतनी सी मैं बात करूंगा।
क्यूँ आये क्यूँ जिया अभी तक, धरती में क्या किया अभी तक,
कितनों को नाराज किया खुश कितने बोलो यार अभी तक।
उत्तर से अंतस भर जाये, ,,,,,,, उस पर ही विश्वास करूंगा।
सबको अपना हक मिल जाये इतनी सी मैं बात करूंगा।
प्रेम भरा रिश्तों का चादर, छिन-छिनकर फटते देखा है।
फिर सिसक-सिसक तन्हाई में, , तुरपाई करते देखा है।
रिश्तों की चादर सिल जाये, उन रिश्तों पे नाज करूंगा।
सबको अपना हक मिल जाये, इतनी सी मैं बात करूंगा।
मतदाता को रोजगार, रोटी, कपड़ा, क्या स्वास्थ्य दिया ?
सैनिक-विधवा, मुफ़लिस आश्रय, क्या हिन्दुस्तां को तार दिया?
प्रश्नों से भरा सदन हिल जाये, इतनी मैं आवाज करूंगा।।
सबको अपना हक मिल जाये, इतनी सी मैं बात करूंगा।
भारत हो घर जैसा प्यारा, सीधी सच्ची सरकार रहे।
झूम-झूमकर नाचे गाएं जब सुख-दुख या त्यौहार रहे।
घर के सारे हिल-मिल जाये, इतनी सी मैं आस करूंगा।।
सबको अपना हक मिल जाये इतनी सी मैं बात करूंगा।
संतोष बरमैया #जय