हक दोस्ती का अदा रिश्तों की तरह कर
हक दोस्ती का अदा रिश्तों की तरह कर
तू इबादत कर तो फरिश्तों की तरह कर
एकमुश्त ना चुका ये कर्ज मुहब्बतों का
थोड़ा थोड़ा अदा,किश्तों की तरह कर
ये मुर्दारी छोड़ जिंदा है जिंदा नजर आ
कुछ तो हरारत सी जीस्तों की तरह कर
गुजरे लोगों के लिये मुस्तकबिल ना गंवा
अब याद उनको गुजिस्तों की तरह कर
अपने बुजुर्गों के नक्शे कदम पर चलकर
नाम उनका रौशन तू पुश्तों की तरह कर
मारूफ आलम
शब्द अर्थ
एकमुश्त-इक्ठा,इक साथ
जीस्त- जिंदगी
गुजिस्ता-गुजरा हुआ