हकीकत
दिन के कहे हटो अछूत नारी,
रात के कहे सेज सजाओ हमारी।
भोर होत कहे ,सॉरी,
क्या यही है मानवता हमारी।
शोषण करता तुम क्या जानो,
क्या है स्वाद गरीबी का।
गरीब के लिए गरीबी मजबूर करें,
यह रिश्ता बहुत करीबी का।
नारायण अहिरवार
अंशु कवि